Adsense

GSC JAUNPUR
Good Service Citizen Jaunpur

Welcome to Sarkari and Private Job Portal and Daily News

UP Scholarship Online Form 2025-2026 || UP B.ED Combined Entrance Exam 2025-26 New || CCC Online Form 2025 New IRCTC Train Booking 2025 || UPSSSC PET Answer Key Download Online 2023 New || Income, Caste, Domicile Certificate Verification Aadhar Correction & Updated 2025 New || PREPARATION of Exam Online Test Book 2025 || Rojgaar Sangam U.P 2025 Maharaja Suhel Dev University Azamgarh 2025 || LIGHT Bill Payment 2025 || VBSPU Jaunpur College Exam Result Declared 2025 New
Breaking News
Loading...

Termite Treatment Chemicals

दीमक

( Termite )

अन्य नाम - पंखी  

वैज्ञानिक नाम - दीमक को जातियाँ मुख्यतः मिलती हैं

1. Odontotennes ghours Holmgren ,

2. Micotennes besj Holmgren .

3. Coptotenmes flecheri Holmgren

4. Eutermes hcimi Walk .

Order - Isoptera .

Family - Termitidae .

 पोषक पौधे - गन्ना , गेहूँ , जौ , कपास , मूंगफली , बैंगन , मिर्च , आम , अमरूद , नींबू , अनार इत्यादि वैसे ये सभी हरी सूखी वनस्पति को जिसमें सेलूलोज होता है , खाते हैं भण्डारघरों में एकत्रित अनाजों को भी नुकसान पहुंचाते हैं

वितरण - संसार के लगभग सभी देशों में मिलती है परन्तु भारत , लंका , बर्मा , मलाया , आस्ट्रेलिया , अमेरिका आदि में बहुतायत से पायी जाती है भारतवर्ष के सभी प्रदेशों में क्षति करती है

क्षति एवं महत्व - सर्वभक्षी ( polyphagous ) कीट है तथा खेतों और घरों दोनों जगह नुकसान पहुंचाती है क्षति केवल शिशु तथा वयस्क श्रमिक दीमक ही करते हैं चूँकि दीमक जमीन में घर बनाकर रहती हैं अतः इनका आक्रमण पौधों के उगने से साथ ही प्रारम्भ हो जाता है जिस समय पौधे छोटे और कोमल होते हैं तो ये उनकी पृथ्वी की सतह के नीचे से काटकर सुखा देती हैं उत्तर प्रदेश में इस कीट का प्रकोप गेहूँ तथा गन्ना में अधिक होता है प्रायः यह देखा गया है कि असिंचित क्षेत्रों में दीमक फसलों को अधिक नुकसान पहुँचाती हैं क्योंकि भूमि में अधिक पानी रहने के कारण यह सक्रिय नहीं हो पाते दीमक पौधों को रात्रि के समय अधिक नुकसान पहुँचाती हैं तथा दिन में ये घरों में छिपी रहती हैं इस कीट से ग्रसित वस्तुयें अनियमित रूप से कटी हुई होती हैं तथा उसमें मिट्टी चिपकी रहती है फलों के पौधों पर भी इनका प्रकोप होता है जिसके फलस्वरूप उनके तनों तथा डालों पर मिट्टी की सुरंगें दिखाई पड़ती हैं यदि उनको हटाया जाये तो दीमक भागती हुई नजर आती हैं इसके साथ ही खाद के गड्ढों पर भी ये आक्रमण करती हैं फलतः खाद की गुणता पर प्रभाव डालती हैं कच्चा गोबर इसका प्रिय भोजन है अतएव जिस खेत में गोबर डाला जाता है वहाँ उनका प्रकोप अति शीघ्र होता है उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि दीमक एक ऐसा कीट है जिसका प्रकोप खेतों में , बागों में , घरों तथा गोदामों में होता है और ये पूरे वर्ष सक्रिय रहते हैं

जीवन इतिहास - इस कीट के जीवन - चक्र में वैसे तो तीन अवस्थायें अण्डा , शिशु तथा प्रौढ़ होती हैं परन्तु प्रौढ़ कीट से विभिन्न रूपता में जी कि क्रमशः पंखधारी नर - मादा , श्रमिक , सैनिक , राजा और रानी होते हैं  

अण्डा - बरसात के शुरू होते ही पंखधारी नर और मादा अपने घरों से निकलकर उड़ान भरते हैं जिसको मैथुन उड़ान ( nuptial light ) कहते हैं यह इनकी पहली और अन्तिम उड़ान होती है ये मैथुन करते हैं एवं इसी बीच इनके पंख टूटकर गिर जाते हैं जो नर - मादा की जोड़ी साथ - साथ जमीन पर गिरती हैं वे वहीं पर कई फीट नीचे जाकर घर बनाती हैं यही क्रमशः राजा और रानी में परिवर्तित हो जाते हैं रानी इस बीच बढ़कर 7-8 सेमी लम्बी हो जाती है तथा उसका पेट अण्डों की अधिकता के कारण फूल जाता है रानी पहले तो कम संख्या में अण्डे देती है परन्तु बाद में 300 से लेकर 20,000 अण्डे प्रतिदिन और विशेष अनुकूल परिस्थितियों में 40,000 इससे भी अधिक अण्डे देती हुई पायी गई है अण्डे हल्के पीले रंग के गुर्दाकार होते हैं जिनकी लम्बाई 1/2 मिमी होती है अण्डे वातावरण की दशाओं के अनुसार 20 से 90 दिनों में फूटते हैं राजा और रानी 3-15 वर्ष तक जीवित रहते हैं

शिशु अण्डों से निकलने के पश्चात् शिशु सफेद , पीले रंग के होते हैं जिनकी लम्बाई 1 मिमी होती है प्रारम्भ में कुछ दिन ये

राजा - रानी की विष्टा खाकर जीवन व्यतीत करते हैं तथा बाद में भोजन की तलाश में बाहर निकलते हैं ये शिशु 6-13 महीनों में 410 बार त्वचा निर्मोचन करने के पश्चात प्रौढ़ श्रमिक , सैनिक तथा पंखधारी नर , मादाओं में परिवर्तित हो जाते हैं इनमें से श्रमिक अधिक बनते हैं क्योंकि एक परिवार में इनकी संख्या अधिक होती है

प्रौढ़ - दीमक एक सामाजिक कीट है जो कि भूमि में संयुक्त परिवार के रूप में रहता है जिसके अन्तर्गत राजा के अतिरिक्त श्रमिक , सैनिक तथा पंखधारी प्रौढ़ भी होते हैं

श्रमिक- दीमक के समाज में श्रमिकों की संख्या ही सबसे अधिक है जो कि कुल सदस्यों की लगभग 80-90 प्रतिशत होती है ये सभी सदस्यों में छोटी लगभग 6-8 मिमी लम्बी होती हैं जिनके मुखांग काटने तथा चबाने वाले होते हैं इनके आँखें तथा पंख नहीं होते एवं जननांग भी विकसित रूप में नहीं पाये जाते अर्थात् बांझ नर और मादा दोनों होते हैं इनका कार्य सम्पूर्ण परिवार का पालन - पोषण करना तथा कवक उद्यान ( fungal garden ) एवं घर इत्यादि बनाना है

सैनिक - जैसा कि नाम से स्पष्ट है ये सैनिक खतरों से , दुश्मनों से घर एवं परिवार की रक्षा करते हैं इनकी संख्या कुल सदस्यों की लगभग 3-5 प्रतिशत होती है ये श्रमिक से थोड़ा बड़े , मैन्डिविल्स मजबूत तथा आगे की ओर निकले रहते हैं जो कि परिवार को बाहरी दुश्मनों से बचाने में आक्रमण लिये अधिक उपयुक्त रहते हैं ये भी श्रमिकों की भाँति नपुंसक रूप हैं जिनके जननांग विकसित नहीं रोजे

 नर - मादा- ये दो प्रकार के होते हैं

( 1 ) कम्पलीमेन्ट्री फार्मस ( complementary forms ) , -

( 2 ) कोलोनाइजिंग फार्मस ( colonizing forms )

1. ( 1 ) कम्पलीमेन्ट्री फार्मस - वह दोनों ही लिंगों के पंखहीन रूप हैं जो पंख युक्त नर - मादा ( macropterous forms ) की अनुपस्थिति में परिवार की सदस्य संख्या को कायम रखते हैं एक परिवार में इनकी संख्या सेकड़ों में होती है

( 2 ) कोलोनाइजिंग फार्मस - इस प्रकार के दीमक बरसात में पैदा होते तथा रोशनी में आकर्षित होते हैं इनके शरीर पर दो जोड़ी लम्बे पारदर्शक पंख होते हैं जिसका प्रयोग ये मैथुन , उड़ान के लिये करते हैं इसके पश्चात् इनके पंख गिर जाते हैं इस प्रकार प्रत्येक जोड़ा ( नर - मादा ) बाद में राजा - रानी में परिवर्तित होकर नये समाज की रचना करते हैं

राजा - पंखधारी नर जो मादा से मैथुन के पश्चात उसके साथ रहता है , राजा कहलाता है प्रायः इसकी संख्या परिवार में एक ही होती है आकार में रानी से छोटा तथा उसी के साथ ही शाही कक्ष में पड़ा रहता है इसका कार्य केवल समय - समय पर रानी के साथ मैथुन करना है

रानी- यह परिवार में सबसे बड़ी लगभग 6-8 सेमी लम्बी तथा अण्डों से पेट भरा होने के कारण मोटी होती है इसलिये यह चल नहीं पाती और सिर्फ शाही कक्ष में पड़े - पड़े अण्डे देती रहती है इसके उदर में छोटी - छोटी तीन टाँगें होती हैं इसका कार्य केवल अण्डे देकर परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ाना है इस प्रकार से शिशु विभिन्न प्रकार के प्रौढ़ों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी मिलती है

नियन्त्रण - ( 1 ) खेतों में अवशेष नहीं छोड़ना चाहिये क्योंकि दीमक उसको खाकर जीवित बनी रहती अतः जुताई करके इन्हें इकट्ठा कर जला दें

( 2 ) खेतों में कभी भी कच्चा गोबर नहीं डालना चाहिये

( 3 ) खेतों में समय - समय पर कई बार पानी लगाते रहने से भी इनका प्रकोप कम हो जाता है

( 4 ) जिन खेतों में दीमक का प्रकोप प्रतिवर्ष होता हो उनमें कोई फसल बोने से पहले निम्न दवाओं से किसी एक की दो गई मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने से इसके आक्रमण की सम्भावना कम हो जाती है

( 1 ) बी एच सो 10 % धूल ­­­­­­---------  30 Kg

( 2 ) अल्लि 5% धूल         ----------- 25 kg

( 3 ) हैप्टाक्लोर 5 % धूल      ------------ 30 kg

( 4 ) क्लोरडेन 5% धूल        ------------30 kg

( 5 ) यदि खड़ी फसल में इसका आक्रमण हो गया है तो नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक की दी हुई मात्रा को सिंचाई के पानी के साथ प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर इस कीट को नष्ट किया जा सकता है |

( 1 ) आल्ड्रिन 30 सी                             -------------- 3.75 Litter

( 2 ) गामा बी एच सी 20 सी             --------------3.75 Litter

( 3 ) हैप्टाक्लोर 20 सी - 3.75 लीटर - 3.75 लीटर ----3.75 Litter

( 4 ) क्लोरपायरीफास 20 सी - 3.75 लीटर  ------------3.00 Litter

( 6 ) गेहूं के बीज को बोने से 23 घण्टे पहले 30 % आल्ड्रिन सी की 400 मिली मात्रा को 5 लीटर पानी में मिलाकर 40 किमा उपचारित करके बोने से इस कीट का प्रकोप नहीं होता

( 7 ) बोने से पूर्व गन्ने के टुकड़ों को 0.25 % बी एच सी या 0.5 % डी डी टी के घोल से उपचारित करें अथवा बोने के समय 5 % बी एच सी चूर्ण या 0.25 % आल्ड्रिन का घोल कुंड में डालें

प्राकृतिक शत्रु - कुछ चिड़ियाँ जैसे तीतर , बटेर , कौआ तथा गिद्ध आदि


Post a Comment

0 Comments

×