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जैविक एजेण्ट का खेती में प्रयोग

जैविक एजेण्ट का खेती में प्रयोग प्रदेश में फसलों को कीटो , रोगों एवं खरपतवारों आदि से प्रति वर्ष 7 से 25 प्रतिशत की क्षति होती है जिसमें 33 प्रतिशत खरपतवारों द्वारा , 26 प्रतिशत रोगों द्वारा , 20 प्रतिशत कीटों द्वारा , 7 प्रतिशत भण्डारण के कीटों द्वारा , 6 प्रतिशत चूहों द्वारा तथा 8 प्रतिशत अन्य कारक सम्मिलित है । इस क्षति को रोकने के लिए कृषि रक्षा रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है प्रदेश में कीटनाशकों की ( टेक्निकल ग्रेड ) औसत खपत 256 ग्राम प्रति हे 0 है , जो देश के औसत खपत ( टेक्निकल ग्रेड ) 380 ग्राम प्रति हेक्टेयर से कम है । इस औसत खपत में 58.7 प्रतिशत कीटनाशक , 22 प्रतिशत तृणनाशक , 16 प्रतिशत फफूँदनाशक तथा 3.3 प्रतिशत चूहानाशक एवं धूम्रक सम्मिलित है । रासायनिक कृषि रक्षा रसायनों के प्रयोग से जहाँ कीटों , रोगों एवं खरपतवारों में सहनशक्ति पैदा हो रही है और कीटों के प्राकृतिक शत्रु ( मित्र कीट ) प्रभावित हो रहे है , वहीं कीटनाशकों के अवशेष खाद्य पदार्थों , मिट्टी , जल एवं वायु को प्रदूषित कर रहे है । रासायनिक कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए जैविक कीटनाशी / जैविक एजेन्ट एवं फेरोमोन प्रपंच का प्रयोग करना नितान्त आवश्यक है के जिससे पर्यावरण प्रदूषण को कम कर मनुष्य स्वास्थ्य पर बुरा असर रोकने के साथ - साथ मित्र कीटों का भी संरक्षण होगा तथा विषमुक्त फसल , फल एवं सब्जियों का उत्पादन भी किया जा सकेगा । जैविक एजेन्ट ( बायो - एजेन्ट ) : जैविक एजेन्ट ( बायो - एजेण्ट्स ) मुख्य रूप से परभक्षी ( प्रीडेटर ) यथा प्रेइंग मेन्टिस , इन्द्र गोप भृंग , ड्रोगेन फ्लाई , किशोरी मक्खी , क्रिकेट ( झींगुर ) , ग्राउन्ड वीटिल , रोल वीटिल , मिडो ग्रासहापर , वाटर वग , मिरिड वग , क्राइसोपर्ला , जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा , मकडी आदि एवं परजीवी ( पैरासाइट ) यथा ट्राइकोग्रामा कोलिनिस , कम्पोलेटिस क्लोरिडी , एपैन्टेलिस , सिरफिड फ्लाई , इपीरीकेनिया मेलानोल्यूका आदि होते हैं , जो मित्र कीट की श्रेणी में आते हैं । उक्त कीट शत्रु कीटों एवं खरपतवार को खाते हैं । इसमें कुछ मित्र कीटों को प्रयोगशाला में पालकर खेतों में छोड़ा जाता है परन्तु कुछ कीट जिनका प्रयोगशाला स्तर पर अभी पालन सम्भव नहीं हो पाया है , उनको खेत / फसल वातावरण में संरक्षित किया जा रहा है । वस्तुतः मकड़ी कीट वर्ग मे नहीं आता है लेकिन परभक्षी होने के कारण मित्र की श्रेणी में आता है । बायो - एजेण्ट्स कीटनाशी अधिनियम में पंजीकृत नहीं है तथा इनकी गुणवत्ता , गुण नियंत्रण प्रयोगशाला द्वारा सुनिश्चित नहीं की जा सकती है ।

1. ट्राइकोग्रामा कोलिनिस : ट्राइकोग्रामा कोलिनिस अण्ड परजीवी छोअी ततैया होती है । मादा ततैया अपने अण्डे को हानिकारक कीटों के अण्डों में डाल देती है । अण्डों के अन्दर ही पूरा जीवन चक्र पूरा होता है । प्रौढ़ ततैया अण्डेब में छेद कर बाहर निकलता है । इसका जीवन चक्र निम्न प्रकार है : 16-24 घण्टे 2-3 दिन 2-3 दिन 8-10 दिन ( गर्मी ) 9-12 दिन ( जाड़ा ) ट्राइकोग्राम की पूर्ति कार्ड के रूप में होती है । एक कार्ड की लम्बाई 6 इंच तथा चौड़ाई 1 इंच होती है जिसमें लगभग 20000 अण्ड परजीवी होते हैं । ट्राइकोग्रामा विभिन्न प्रकार के फसलों सब्जियों एवं फलों के हानिकारक कीटों , जो पौधे की पत्तियों , कलियों तथा टहनियों आदि के बाहरी भाग पर अण्डे देते हैं , के अण्डों को जैविक विधि से नष्ट करने हेतु प्रयोग किया जाता है ।

अण्डा अवधि लारवा अवधि प्यूपा अवधि पूर्ण जीवन चक्र ट्राइकोग्रामा कोलिनिस ( ट्राइकोग्रामा कार्ड ) के प्रयोग की विधिः ट्राइकोग्रामा कार्ड को विभिन्न फसलों में एक सप्ताह के अन्तराल पर 3-4 बार लगाया जाता है ।  खेतों में हानिकारक कीटों के अण्डे दिखाई देते ही ट्राइकोकार्ड को छोटे - छोटे 4-5 सामान टुकड़ों में काट कर खेत के विभिन्न भागों में पत्तियों की निचली तरह


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