सरसों के प्रमुख कीट : (Mustard Of Insect Control)
सरसों के नाशीजीव एवं उनका समेकित प्रबंधन सरसों ( तोरिया राई और सरसों ) का भारत वर्ष में विशेष स्थान है तथा यह देश में रबी की मुख्य फसल है । सरसों में अनेक प्रकार के कीट समय - समय पर आक्रमण करते हैं लेकिन 4-5 फीट ही आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन कीटों की सही पहचान कर उचित रोकथाम की जाए

सरसों के प्रमुख कीट :
1.बालों वाली सुण्डी / गंगरा कीट ( Hairy caterpillar )
लक्षण :-
इस
कीट की तितली भूरे रंग की होती है , जो
पतियों की निचली सतह पर समूह में हल्के पीले रंग के अण्डे देती है । पूर्ण विकसित
सुण्डी का आकार 3-5 से . मी लम्बा होता है इसका सारा शरीर
वालों से ढका होता है तथा शरीर के अगले व पिछले भाग के बाल काले होते है । इस
सुण्डी का प्रकोप अक्तूबर से दिसम्बर तक तोरिया की फसल में अधिक होता है तथा कभी -
कभी राया व सरसों की फसलें भी इसके आक्रमण की चपेट में आ जाती है । नवजात सुण्डिया
आरम्भ में 8-10 दिन तक , समूह में पत्तियों को खाकर छलनी कर देती है तथा बाद में अलग - अलग
होकर पौधों की मुलायम पत्तियों , शाखाओं
तनो व फलियों की छाल आदि को खाती रहती है जिससे पैदावार में भारी नुकसान होता है ।
प्रबंधन
1. फ़सल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई
करें ताकि मिट्टी में रहने वाले प्युपे को बाहर आने पर पक्षी उन्हें खा जाए अथवा
धूप से नष्ट हो जाए ।
2. ऐसी पत्तियां जिन पर अण्डे समूह में
होते हैं , को तोड़कर मिट्टी में दबाकर अण्डों को
नष्ट कर दें । इसी तरह छोटी सुण्डियों सहित पत्तियों को तोड़कर मिट्टी दबाकर अथवा
केरोसीन या रसायन युक्त पानी में डूबोकर सुण्डियों को नष्ट कर दें ।
3.इस कीडे का अधिक प्रकोप हो जाने पर २०
किलो नीम 5 किलो धतूरा की पती १ किलो तम्बाकू की
पत्ती का काढ़ा बना कर 250
लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव
करें । 4. 5 % गुड़ का घोल बनाकर छिड़काव करें ।
5.बर्ड
पर्चेर 6.8 की संख्या में स्थापित करे ।
चितकबरा
कीट या पेंटेड बर्ग ( Painted Bug )
लक्षण
:
यह कीड़ा काले रंग का होता है , जिस पर लाल , पीले , व नारंगी के धब्बे होते है । इस कीटे के शिशु हल्के पीले व लाल रंग के होते हैं । दोनों प्रौद व शिशु इन फसलों को दो बार नुकसान पहुंचाते हैं पहली बार फसल उगने के तुरन्त बाद सितम्बर से अक्तूबर तक तथा दूसरी बार फसल की कटाई के समय फरवरी - मार्च में प्रौढ़ व शिशु पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियों का रंग किनारों से सफेद हो जाता है , अतः इस कीड़े को पीलिया भी कहते हैं । फसल पकने के समय भी कीड़े के प्रौढ़ व शिशु फलियों से रस चूसकर दानों में तेल की मात्रा को कम कर देते हैं जिससे दानों के वजन में भी कमी आ जाती है ।
प्रबंधन
:
1. फसल की बुआई तब करें जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस हो जाए ।
2. फसल में सिंचाई कर देने से प्रौढ़ शिशु
एवम् अण्डे नष्ट हो जाते हैं ।
3. बीज को 300 ग्राम गौ - मूत्र प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ।
4. फराल की शुरू की अवस्था में 20 लीटर गौमूत्र में 5 नीम की पट्टी का काढ़ा मिला कर 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़
छिड़काव करे |
5. मार्च
- अप्रैल में यदि जरूरत पड़े तो 15 ली
. गौमूत्र में ३ किलो नीम की पट्टी १ किलो धतूरे की पट्टी और १०० ग्राम लहसुन का
पेस्ट का काढ़ा मिला लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़कें ।
6. खेत
की गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए ।
7. कीट प्रकोप होने पर बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद यदि सम्भव हो तो पहली
सिंचाई कर देना चाहिए जिससे कि मिट्टी के अन्दर दरारों में रहने वाले कीट जायें ।
8. छोटी फसल में यदि प्रकोप हो तो
क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल 15-20 कि.ग्रा . प्रति हेक्टेयर की दर से
भुरकाव सुबह के समय करें ।
9. अत्यधिक प्रकोप के समय मेलाथिय 50 ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की
दर से छिड़काव करें
3. आरा मक्खी / साव पलाई ( Saw fly )
लक्षण :
इस कीड़े की मक्खी का धड़ नरंगी , सिर
व पैर काले तथा पंखों का रंग धुएं जैसा होता है । सुविडयों का रंग गहरा हरा होता
है जिनके ऊपरी भाग पर काले धब्बों की तीन कतारें होती है । पूर्ण विकसित सुण्डियों
की लम्बाई 1.5 - 20 से.मी. तक होती है । इस कीड़े की
सुण्डिया इन फसलों के उगते ही पत्तों को काट - काट कर खा जाती है । इस कीड़े का
अधिक प्रकोप अक्तूबर - नवम्बर में होता है । अधिक आक्रमण के समय सुडियां तने की
छाल तक भी खा जाती है ।
प्रबंधन :
1. गर्मियों में खेत की गहरी जोताई करें ।
2. सुण्डियों को पकड़ कर नष्ट कर दें ।
3. फसल
की सिंचाई करने से कीड़े की खूब कर मर जाती है ।
4. पासल में इस कीड़े का प्रकोप होने पर 20 लीटर गौमूत्र में 5 नीम की पट्टी का काढ़ा मिला कर 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काय
करें
4. चेपा / एफिड ( माहू ) ( Aphid )
लक्षण :
यह
कीड़ा हल्के हरे - पीले रंग का 10 से 15 मि.ली. तम्बा होता है । इसके प्रौद एवं
शिशु पत्तियों की निचली सतह और फूलों की टहनियों पर समूह में पाये जाते है । इसका
प्रकोप दिसम्बर मास के अंतिम सप्ताह में ( जब फसल पर फूल बनने शुरू होते हैं )
होता है व मार्च तक बना रहता है । प्रौद्ध व शिशु पौधों के विभिन्न भागों से रस
चूसकर नुकसान पहुंचाते है । लगातार आक्रमण रहने पर पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे
हो जाते हैं , जिन पर काला कवक लग जाता है
परिणामस्वरूप पौधों की भोजन बनाने की ताकत कम हो जाती है जिससे पैदावार में कमी हो
जाती है । कीट ग्रस्त पौधे की वृद्धि रूक जाती है जिसके कारण कभी - कभी तो फलिया
भी नहीं लगती और यदि लगती है तो उनमें दाने पिचके छोटे हो जाती है |
प्रबंधन
:
1. समय पर बुवाई की गई फसल ( 10-25 अक्तूबर तक ) पर इस कीट का प्रकोप कम
होता है ।
2. रायी जाति किस्मों पर चेपे का प्रकोप
कम होता है ।
3. दिसम्बर के अन्तिम जनवरी के प्रथम
सप्ताह में जहां इस कीट के समूह दिखाई दें उन टहनियों के प्रभावित हिस्सों को कीट
सहित तोड़कर नष्ट कर दें ।
4. जब खेत में कीटों का आक्रमण 20 प्रतिशत पौधों पर हो जाये या औसतन 13-14 कीट प्रति पौधा हो जाए तो निम्नलिखित
कीटनाशियों में से किसी एक का प्रयोग करें |
5. 20 लीटर गौमूत्र में 5 नीम की पट्टी का काढ़ा मिला कर 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ कीट
प्रस्त फसलों पर पहला , दूसरा तथा तीसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें । अगर कीढ़ों का
आक्रमण कम हो तो छिड़कादों की संख्या कम की जा सकती है । छिड़काव सौंय के समय करें , जब फसल पर मधुमक्खियां कम होती है ।
6. पिला चिपचिपा प्रपंच 6-8 की संख्या में प्रति एकड स्थापित करे ।
7. नीम आधारित कीटनाशक का प्रयोग करे ।
8. सरसा फसल में चैंपा के जैविक नियंत्रण
हेतु फसल में कीट की आर्थिक क्षति स्तर में पाए जाने पर 2 प्रतिशत नीम के तेल को 0.1 % तरल साबुन के घोल ( 20 मि.ली नीम का तेल 1 मि.ली. तरल साबुन ) में मिलाकर छिड़काव
करें ।
5. सुरंग बनाने वाला कीडा / लीफ माइनर कीट
( Leaf Miner ) या दस्तकत बाला कीट
लक्षण :
इस कीड़े की मनियां भूरे रंग तथा आकार
में 15-20 मि.ली. होती है सुण्डियों का रंग पीला
व लम्बाई 10-15 मि.ली. होती है । जनवरी से मार्च के
महीनों सुण्डियां पत्तियों के अन्दर टेली - मेढ़ी सुरंगे बनाकर हरे पदार्थ को खा
जाती है जिससे पत्तियों की भोजन बनाने की क्रिया कम हो जाती है व फसल पैदावार पर
बुरा असर पड़ता है ।
प्रबंधन
1. कीटग्रस्त पतिया को तोड़कर नष्ट करे या
मिट्टी में दबा दे ताकि और मक्खियां न बन सकें ।
2. इस कीडे का आक्रमण पा के साथ ही होता
है इसलिए येपे के नियन्त्रण के लिए अपनाए जाने वाले कीटनाशियों के प्रयोग से इस
कीट का आक्रमण रुक जाता है ।
3. समन्धित कीट नियंत्रण के लिए कीट के
आर्थिक क्षति स्तर ( 10-15
पौधों पर 26-28 पेपा प्रति 10 से.मी. तने की ऊपरी शाखा ) में पाए
जाने पर ली . / हेक्टेयर का छिड़काव करें । बायोएजेन्ट वर्टिसिलिगम लिकेनाइ एक
किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं 7 दिन
के अंतराल पर मिथाइल डिमेटोन ( 25 ई.सी.
) या डाइमिथोएट ( 30 ई.सी ) 500 मि
सरसों के प्रमुख रोग
सफेद रतुआ रोग (
White Rust )
लक्षण:
सफेद रतुआ रोग प्रायः सभी जगह पाया
जाता है , जब तापमान 10-18 ° सेल्सियस के आसपास रहता है तब पौधों की
पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के फफोले बनते है । रोग की उग्रता बढ़ने के साथ
- साथ ये आपस में मिलकर अनियमित आकार के दिखाई देते है । पत्ती को उपर से देखने पर
गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं । रोग की अधिकता में कभी - कभी रोग फूल एवं
फली पर केकडे के समान फूला हुआ भी दिखाई देता है ।
प्रबंधनः
1.समय पर बुवाई ( 1-20 अक्टूबर
) करें ।
2. बीज उपचार ट्राइकोडर्मा 5gm या मेटालेक्जिल ( एमॉन 35 एस.डी. ) 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें ।
3.फसल को खरपतवार रहित रखें एवं फसल
अवशेषों को नष्ट करें । अधिक सिंचाई न करें ।
4. रिडोमिल एम जेड़ 72 डब्लू.पी अथवा मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 2 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल से 45 एवं
55 दिन की 2. अल्टरनेरिया झुलसा गोल रिंग रोग ( Alternaria
blight )
लक्षण :
पत्तियों पर गोलभूरे दिखाई पड़ते है ।
फिर व बोल देते है एवं धब्बों में केन्द्रीय छल्ले दिखाई देते हैं । रोग के बढ़ने
पर गहरे भूरे धलियों पर पील जाते है । फलियों पर गोल तथा हने पर लम्बे होते हैं
रोगग्रसित फलियों के दाने सिकुड़े तथा बदरंग हो जाते हैं एवं लकीपट जाती है ।
प्रबंधन :
1. बीजोपचार ट्राइकोडमो ogm पायाग्राम प्रतिकार करें ।
2. रोग के प्रारम्भ होने पर मेटालेस्सिल 8% मैनकोजेब 64 % ग्राम प्रति लीटर पानी के बिना 2 से छिड़काव
3. 10 दिन के अंतर से 4555 एवं 65 दिन की फसल पर करें ।। 310 अक्टूबर से 25 अक्टूबर केबीआई करे ।
4. पोटास की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें ।
3. सरसों का तना सहन पोलियो रोग ( Stem rot
)
लक्षण :
तने के निचले भाग में मटनेले या भूरे
रंग जाल से ढके होते हैं । रोग की अधिकता स्केलेरोशिया दिखाई देते है ।
प्रबंधन :
1.स्वस्थ व प्रमाणित बीज का ही उपयोग
करें ।
2. बीजोपचार 6 ग्राम ट्राइकोडर्मा से या ग्राम
कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से करें ।
3. गर्मियों में गहरी जुताई करें व फसल के
अवशेष नष्ट कर दें ।
4. सिफारिश से अधिक नाइट्रोजन न डालें ।
5. फसल में कतारों और पौधों के बीच की
उचित दूरी रखें फसल धनी न रखें ।
6. बीमारी का प्रकोप देखकर 0.1 प्रतिशत की दर से कार्बेन्डाजिम दया
फूल की अवस्था पर 10 दिन के अन्तराल में दो बार पतियों ने पर छिड़काव करें ।

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