शिक्षामित्र से शिक्षक बने याचियों की पेंशन पर सचिव फैसला लें या पेश होंः हाईकोर्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्र से शिक्षक बने याचियों की पुरानी पेंशन की मांग को लेकर सख्त रुख अपनाया है।
कोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव को चेतावनी दी है कि चार सितंबर तक याचिका में पारित आदेश के मुताबिक फैसला न लेने पर उन्हें कोर्ट में पेश होना होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की अदालत ने रमेश चंद्र व 36 अन्य की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर दिया है।
याचियों का दावा है कि प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने वर्ष 2000 में शिक्षामित्र योजना शुरू की थी। इसके तहत विभिन्न प्राथमिक विद्यालयों में करीब पौने दो लाख युवाओं की तैनाती की गई।
इनमें से हजारों शिक्षामित्र विभिन्न भर्तियों के माध्यम से प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक बन गए। वहीं, जो अप्रैल 2005 से पहले नियुक्त हुए और वर्तमान में शिक्षक हैं, उन्हें पुरानी पेंशन का हकदार माना जाना चाहिए।
याचियों ने इस मांग के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। नवंबर 2024 में कोर्ट ने याचियों के दावों पर बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव को तीन महीने में फैसला लेने का आदेश दिया था, लेकिन याचियों का प्रत्यावेदन अब तक निस्तारित नहीं किया गया। इसके खिलाफ याचियों ने अवमानन याचिका दाखिल किया है।
वेतन मामले में कमेटी के गठन में लेटलतीफी पर कोर्ट नाराज
प्रयागराज। हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग में वेतन मामले को लेकर कमेटी गठन की लेटलतीफी पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने अपने ही आदेश के अनुपालन में देरी को लेकर शिक्षा निदेशक (बेसिक) उत्तर प्रदेश, लखनऊ से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कहा है कि अगली तारीख पर आदेश का अनुपालन न करने पर अतिरिक्त मुख्य सचिव, बेसिक शिक्षा को कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने नंदू प्रसाद की याचिका पर दिया। संत कबीर नगर निवासी नंदू प्रसाद 2001 में बेसिक विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर जूनियर हाईस्कूल में नियुक्त हुए थे, लेकिन उनका वेतन नहीं बहाल हो सका। इसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
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