गन्धी
( Gundhi bug )
अन्य नाम – रेंथा
, चुसिया , रैन्या
आदि ।
वैज्ञानिक नाम- Leptocorisa
varicomis Fabr
इसके अतिरिक्त इसकी दो निम्न जातियाँ और मिलती
हैं-
L. costalis
L. acuta
Order - Hemiptera
Suborder - Heteroptera
Family - Coreidae
पोषक
पौधे (Host Plant) -
धान , ज्वार , बाजरा
, मक्का , कोदों
, साँवा और अन्य कई घासें ।
वितरण - यह
कीट भारतवर्ष के लगभग सभी प्रदेशों मुख्यतः असम , बिहार
उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , राजस्थान
, देहली , तमिलनाडु
, उड़ीसा तथा केरल में अधिक मिलता है । भारतवर्ष
के अतिरिक्त मलाया , बर्मा , चीन
बंगलादेश में भी पाया जाता है ।
क्षति एवं महत्व — यह
कीट खेतों में जून के महीने में दृष्टिगोचर होता है तथा वर्षा शुरू होते ही घासों
में अण्डे देना शुरू कर देता है और जैसे ही धान के पौधे उगते हैं , उन
पर पहुँच जाता है । इस कीट के प्रौढ़ तथा शिशु दोनों ही नुकसान पहुँचाते हैं ।
दोनों के चुभाने तथा चूसने वाले मुखाँग होते हैं । उत्तर भारत में यह जून से लेकर
अक्टूबर तथा दक्षिणी भारत में नबम्बर - दिसम्बर तक सक्रिय रहता है । प्रारम्भ में
यह धान की कोमल पत्तियों तथा तनों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियाँ पीली पड़कर
कमजोर हो जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार मारी जाती है और वे छोटे रह जाते हैं ।
पत्तियों पर कवक का प्रकोप हो जाने से उनमें भूरे तथा काले धब्बे पड़ जाते हैं ।
जब पौधों में बालें निकलनी शुरू होती हैं तो ये बालियों का रस चूसना प्रारम्भ कर
देते हैं । इस प्रकार से दानों से रस चूस लेने से दाने खोखले तथा हल्के हो जाते
हैं तथा छिलके का रंग सफेद हो जाता है । जिस स्थान पर ये अपना मुखांग चुभाकर रस
चूसते हैं वहाँ पर काला कवक लग जाता है जिससे वह स्थान भूरा अथवा काला हो जाता है
। जिस धान की फसल दुग्धावस्था में अर्थात् सितम्बर से अक्टूबर तक इनके द्वारा अधिक
क्षति होती है तथा यह 20 से 30 % तक
हो सकती है । इन कीटों के शरीर से एक विशेष प्रकार की बदबू निकलती है जिसकी वजह से
इसके प्रकोप को खेतों में आसानी से जाना जा सकता है एवं इसी कारण से इन्हें गंधी
कीट कहते है
Life Cycle
of Leptocorisa varicomis
जीवन इतिहास (LIFE
CYCLE) — इस
कीट के जीवन - चक्र में तीन अवस्थायें , अंडा
, शिशु , तथा
प्रौढ़ पायी जाती हैं
अण्डा
(EGG) — खेतों
में धान की रोपाई हो चुकने के बाद ही ये कीट खेतों में दिखाई पड़ने लगते हैं तथा जुलाई
- अगस्त में मादा मैथुन के बाद धान की पत्तियों के निम्न तल पर तीन कतारों में
अण्डे रखती हैं । ये अण्डे चपटे , गोल और हल्के भूरे रंग के होते हैं ।
प्रत्येक कतार में 10 से 20 अण्डे
होते हैं तथा एक स्थान पर इनकी संख्या लगभग 40 तक
होती है । अण्डे का रंग बाद में काला हो जाता है तथा इसका फूटता है जिनसे कि हल्के
रंग के शिशु निकलते हैं । आकार 1.2 मिमी
० X0-8 मिमी ० होता है । अण्डा तापक्रम तथा मौसम के
अनुसार 4 से 7 दिन
में पककर फूटता
है जिसमे की हल्के रंग के शिशु निकलता है |
शिशु
(NYMPH) — प्रारम्भ
में यह शिशु लगभग 18 मिमी ० लम्बा होता है जो कि ( 6 घण्टे
के अन्दर ही बढ़कर 20 मिमी ० लम्बा हो जाता है । ये रैंगकर
चलते हैं तथा मुलायम पत्तियों , टहनियों का रस चूसते हैं ।
0 Comments
नमस्कार अगर आप को जानकारी अच्छा लगे तो हमें कमेंट और फॉलो करे |