गेहूँ . स्पाट ब्लाच काली गेरुई
गेहूँ . स्पाट ब्लाच काली गेरुई अपनाई जाने वाली प्रमुख क्रियाएं : बुवाई से पूर्व जैव कवकनाशी
( ट्राईकोडरमा प्रजाति आधारित ) के द्वारा 2.5 किग्रा . प्रति है , को 00 किलो गोबर की खाद में मिलाकर मृदा उपचार करें
जिससे अनावृत कण्डुआ , करनालबंट
आदि रोगों के प्रबंधन में सहायता मिलती है ।
बीज उपचार : जैव
कवकनाशी ( ट्राईकोडरमा प्रजाति आधारित ) के द्वारा 5 ग्रा . प्रति किग्रा बीज या
कार्बोक्सिन ग्राम / किग्रा . ) की दर से बीजोपचार करना चाहिए ।
जिससे बीज जनित रोगों
( अनावृत कण्डुआ करनाल बंट आदि ) की रोक थाम हो जाएगी ।
यदि मृदा उपचार जैव
कवकनाशी से नहीं किया गया हो तो कार्बोक्सिन का प्रयोग संस्तुत दर पर किया जा सकता
है ।
अनावृत कण्डुआ से ग्रसित पौधों को उखाड़कर मिट्टी में दबा दें ।
पर्णीय उपचार : रतुआ ( पीला , भूरा
, काला
) तथा झुलसा रोग के प्रबंध हेतु मैकोजेब का 2 छिड़काव 2.0 से ग्राम / लीटर दर से
करना लाभदायक होता है ।
एक हेक्टेयर हेतु 1000
लीटर पानी का प्रयोग करना चाहिए ।
चूर्णिल आसिता रोग के लिए गंधक चूर्ण कवकनाशी का प्रयोग 2 ग्राम / प्रति लीटर पानी की दर से करना चाहिए ।

रोग की पहचान होते ही दवा का प्रोग लाभदायक होता है ।
करनाल बंट तथा स्पाट
ब्लाच रोगों के लिए प्रोपिकोनाजोल का 0.5 मिली . / लीटर पानी की दर से छिड़काव
पुष्पन की अवस्था से पाले लाभदायक रहता है गेहूं के प्रमुख कीट : दीमक : यह एक
सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर रहते हैं ।
एक कालोनी में अनेकों
श्रमिक ( 90 प्रतिशत ) एवं सैनिक ( 2-3 प्रतिशत ) , एक रानी , एक राजा तथा अनेकों कालोनी बनाने वाले या
पूरक अविकसित नर एवं मादा पाए जाते है ।
श्रमिक पंख हीन सबसे
छोटे , पिताभिश्वेत
रंग के होते हैं तथा यह कालोनी के लिए सभी कार्य करते हैं और हमारी फसल एवं अन्य
वस्तुओं को हानि करने के लिए उत्तरदायी होते हैं माहूँ : यह पंख हीन अथवा पंखयुक्त
, हरे
तथा चुभने एवं चूसने वाले छोटे कीट होते हैं ।
इस कीट के शिशु एवं
प्रौढ
पत्तियों बालियों से रस चूसते हैं तथा गुदा द्वारा मधु स्राव भी करते हैं ।
पत्तियों पर गिरे मधुनाव में काले कवक के उगने के कारण प्रकाश संश्लेशण की क्रिया
में बाधा पड़ती है ।
सैनिक कीट : पूर्ण विकसित सूंडी लगभग 40 मिमी लम्बी गहरे बादामी रंग की होती है । इसके शरीर के पृष्ठ भाग पर दो लम्बी हल्की पीली बादामी आगे से पीछे की ओर धारियां पाई जाती है ।
यह भुचर एवं रात्रि पर होती है ।
सूंडी का जीवन लगभग तीन सप्ताह का होता है यह गेहूं की पत्तियां को खाकर हानि पहुंचाती है ।
गुलाबी तना
बेधक : अंडो से निकलने वाले सुडी भूरे गुलाबी रंग की लगभग 5 मिमी. लम्बी होती है । यह 3-4 सप्ताह में पूर्ण विकसित होकर तने के
अन्दर ही प्यूपा में बदल जाती है ।
इस कीट की सूंडी के काटने के फलस्वरूप फसल की
वन्सपतिक अवस्था में मृत गोभ तथा बाल आने पर सफेद बाल बनती है मृत गोन अथवा सफेद
बाल खीचने पर आसानी से बाहर निकल आती है ।
1. मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया
जाय ।
2. बीते समय उचित मात्रा उर्वरक का प्रयोग
अवश्य करे ।
3 . सिंचन
क्षमता का भरपूर उपयोग करते हुए संस्तुति अनुसार सिंचाई करें ।
4 . यदि
पूर्व फसल में या बुवाई के समय जिंक प्रयोग न किया गया हो तो जिंक सल्फेट का
प्रयोग खड़ी फसल में संस्तुति के अनुसार किया जाय ।
5. खरपतवारों के नियंत्रण हेतु रसायनों को संस्तुति अनुसार सामाजिक प्रयोग करें ।
रोगों एवं कीड़ों पर समय से नियंत्रण किया
जाये । कटाई - मढ़ाई : बालियों के पक जाने
( भौतिक परिपक्वता ) पर फसल को तुरन्त काट लेना चाहिए अन्यथा दाने झड़ने की साम्भावना खराब मौसम की दशा में कम्बाईड हार्वेस्टर का प्रयोग श्रेयस्कर है जिससे हानियों से बचा जा सकता है ।
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