गेंहू फसल में खरपतवार , रोग एवं कीटों का एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन एकीकृत खरपतवार प्रबंधन
गेहूं की फसल में रबी ऋतु के लगभग सभी खरपतवार जैसे- गजरी बथुआ प्याजी खरतुआ हिरनखुरी चटरी - मटरी , जंगली गाजर , सेजी , अकरा , अकरी , कृष्णनील , गेहँसा तथा जंगली जई आदि की समस्या रहती है । जिनकी रोकथाग निकाई के अतिरिक्त निम्नलिखित खरपतवार नाशक रसायनों द्वारा भी की जा सकती है ।
खरपतवार का नाम : 1. चौडी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ आरजीमोन ( सत्यानाशी ) , हिरनखुरी , कृष्णनील , गजरी , प्याजी आदि । खरपतवार नाशी का नाम : 2-4 डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत डब्लू.पी . मात्र प्रति हेक्टेयर 615 ग्राम प्रयोग करने का समय एवं विधि : बुवाई के 35-40 दिन के अन्दर फैक्टफैन नोजल से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हे की दर से प्रयोग करना चाहिए । सकरी पत्ती जैसे गेहुंसा व जंगली जई के नियंत्रण हेतु निम्न लिखित रासायनों का प्रयोग करना चाहियें । आइसोप्रोट्यूराने 50 प्रतिशत मात्रा प्रति हेक्टेयर 1.5 किग्रा . अथवा संकॉर 250 ग्राम / मात्रा प्रति हेक्टेयर अथवा 3. पँडीमैथिलीन 30 ई.सी. मात्रा प्रति हेक्टेयर 3.30 लीटर अथवा 4. सल्फो सल्फयूरान 75 डब्लू . जी . मा . प्रति हेक्टेयर 33 ग्राम अथवा 32 मिली . प्रति हेक्टेयर 5. फिनाक्सी प्राप 10 ई.सी. मात्रा प्रति हेक्टेयर 1.00 लीटर । 6. सल्फो सल्फयूरान + मेटा सल्फयूरान 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर 7. त्रिबुनिल हेक्टेयर / ग्रा . कि 2 दोसानेक्स / प्रयोग करने की विधि एवं समय : पहली सिंचाई के एक सप्ताह बाद बुवाई के 30-35 दिन के भीतर फ्लैटफैन नाजिल से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए । जहाँ चौड़ी पत्ती वाले और सकरी पत्ती वाले दोनों हो वहां सल्फो सल्फ्यूरान 75 प्रतिशत ( 32 मिली . / हे . ) मेट सल्फयूरान मिथाइल 5 ग्राम डब्लू जी . 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्र की बुवाई 30-35 दिन बाद छिडकाव 2 , 4 डी . तथा आइसोप्रोटयूरान मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है । पैड़ीमिथिलिन का प्रयोग बुवाई के बाद किन्तु जमाव से पहले किया जाय । इन खरपतवारों को फसल चक्र में परिवर्तन करके भी कम किया जा सकता हैं जहां आइसोप्रोटयूरान प्रभावी नहीं है वहीं पर क्रम संख्या 3,4 व 5 पर अंकित रसायन का प्रयोग करें ।
गेरुई अथवा रतुआ रोग की पहचान : गेरुई भूरे पीले अथवा काले रंग की होती है । क्षेत्र में फसल प्रायः भूरे रतुआ से ही प्रभावित होती है फफूदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं काली गेरुई तना तथा पत्ती दोनों पर लगती हैं । उपचार : गेहूं की फसल में गेरुई रोगों के नियंत्रण के लिए मुख्यतः आर्थिक कारणों कवकनाशी के छिड़काव की आम संस्तुति नहीं की जाती है । केवल उन परिस्थितियों में जिनमें गेहूं की पैदावार कम से कम 25-30 कुंतल प्रति हेक्टेयर होने व गेरुई का प्रकोप होने की प्रबल सम्भावना हो , में मैकोजेब 20 किग्रा , या जिनेब 2.5 किग्रा . प्रति हेक्टेयर का छिड़काव किया जा सकता है । पहला छिड़काव रोग दिखाई देते ही तथा दूसरा छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करना चाहिए । एक साथ झुलसा , रतुआ तथा करनाल बंटतीनों रोगों की आशंका होने पर प्रोपीकोनेजोल ( 25 प्रतिशत ई.सी. ) आधा लीटर रासायन को 1000 लीटर पानी में घोलकर दिड़काव करे । गेहं में फसल सुरक्षा बीज शोधन : गेहूँ की फसल में दुर्गन्धयुक्त कण्डुआ , करनालबंट , अनावृत कण्डुआ तथा गेहूं रोगों का प्रारम्भिक संक्रमण बीज या भूमि अथवा दोनों माध्यम से होता हैं रोग कारक फफूंदी , जीवाणु व सूत्र कृमि बीज की सतह पर सतह के नीचे या बीज के अन्दर , प्रसुप्त अवस्था में मौजूद रहते हैं इसलिए जहाँ तक सम्भव शोधित , उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए ।
यदि सम्भव न हो तो यह उपाय अपनाये । गेहूं की फसल में एकीकृत रोग प्रबंधन : प्रमुख रोग :
1) काली गेरुंई
2 ) भूरी गेरुई
3 ) पीली गेरुई
4 ) करनाल बंट
5) अनावृत कण्डुआ
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